आलोचना >> भक्ति और शरणागति भक्ति और शरणागतिविष्णुकांत शास्त्री
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राम के भक्त के समान मेरा जीवन हो सके इसके लिये भक्ति और शरणागति को समझना अनिवार्य लगा। यह लेखन उसी समझ को प्रशस्त करने का उपक्रम है
तुलसिहिं बहुत भलो लागत,
जगजीवन राम गुलाम को।'
तुलसी की यह उक्ति आज के जीवन के कुहासे को काट कर ऊपर उठने की प्रेरणा देती रही है। राम के भक्त के समान मेरा जीवन हो सके इसके लिये भक्ति और शरणागति को समझना अनिवार्य लगा। यह लेखन उसी समझ को प्रशस्त करने का उपक्रम है।
भावुक पाठक इनको पढ़कर भक्ति और शरणागति के गंभीर अनुशीलन में प्रवृत्त होंगे।
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